खेलो इंडिया
भारत में खेलों के क्षेत्र में भले ही उच्च स्तर की भागीदारी, सफलता के आंकड़े या खेलों को जीवन का हिस्सा बना लेने की बात दूर की लगती हो, परन्तु वर्तमान खेलमंत्री; जो स्वयं ओलंपिक रजत पदक विजेता है के प्रयासों से हम खेलप्रिय राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
भारत में खेलों की स्थिति को बेहतर बनाने का बहुत बड़ा श्रेय निजी क्षेत्र को जाता है। गो स्पोर्ट फाउंडेशन, जे एस डब्ल्यू स्पोर्ट आदि कुछ ऐसे संस्थान हैं, जिन्होंने खिलाड़ियों की सफलता के लिए वित्तीय सहायता के साथ-साथ उच्च स्तर के प्रशिक्षण में भी मदद की है।
लाभ को ही अपना लक्ष्य मानने वाला निजी क्षेत्र भी इस दिशा में अधिक सक्रिय हो रहा है। खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण, दोनों ही खेल और फिटनेस के प्रति जागरुकता लाने की दिशा में जुटे हुए हैं। अलग-अलग संस्थाओं के प्रयासों का असल दारोमदार राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक के दावेदारों पर टिका रहता है। तीरंदाजी, बैडमिंटन, बॉक्सिंग, जिमनास्टिक निशानेबाजी, टेबिल टेनिस आदि कुछ ऐसी खेल विधाएं हैं, जिनमें हमारे खिलाड़ी अच्छा कर भी रहे हैं। अलग-अलग खेलों में व्यापक सफलता निश्चित रूप से महत्व रखती हैं। इससे पता चलता है कि यह एक व्यवस्थित परिवर्तन का परिणाम है।
क्रिकेट, कबड्डी और बैडमिंटन जैसे खेलों के लीग टूर्नामेंट की शुरूआत ने इनकी लोकप्रियता में निश्चित रूप से वृद्धि की है। अन्य खेलों के लिए भी हम ऐसी ही उम्मीद करते हैं।
सरकार ने राष्ट्रीय पोषण मिशन के द्वारा समग्र भारत के स्वास्थ्य और फिटनेस को सुधारना अपना लक्ष्य बनाया है। इसका संबंध खेलों में भागीदारी बढ़ाने से भी है। मंत्रालय की ‘खेलो इंडिया’ मुहिम और खेलमंत्री का ‘हम फिट तो इंडिया फिट’ का नारा सोशल मीडिया द्वारा दी गई ऐसी चुनौतियां हैं, जिसने प्रधानमंत्री को भी अपनी कड़ी बना लिया है।
भारतीय खेल प्राधिकरण के पास खेलों के लिए प्रयोजन, कौशल और बुनियादी ढांचे की सुविधा है। इनके स्टेडियमों का उचित रखरखाव किया जा रहा है। इसके चलते इनका उपयोग भी बढ़ा है। ‘कम एण्ड प्ले’ योजना के अंतर्गत दिल्ली-एनसीआर के 15,000 लोगों ने इसमें अपना पंजीकरण करवा लिया है।
सतत् विकास और उच्च स्तरीय प्रदर्शन के मॉडल को लेकर चल रही, टारगेट ओलम्पिक पोडियम स्कीम, 2028 के ओलोम्पिक अपने धमाकेदार प्रदर्शन पर काम कर रही है।
इन सबमें निजी क्षेत्र की भूमिका बहुआयामी है, मानव पूंजी और क्षमता का विस्तार करना, आदि धावकों की क्षमता को बढ़ावा देना, व्यावसायिक या रणनीतिक लेन-देन के द्वारा निवेश करना, कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें निजी क्षेत्र के सहयोग की आशा की जा सकती है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों के सामंजस्य से इन क्षेत्रों को ठीक किया जा सकता है।
आज हम अपने को एक खेल राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकते परन्तु स्थितियां हमारी पकड़ में हैं, और खेलों के लिए अनिवार्य-उत्कृष्टता, भागीदारी, निवेश, मानव-पूंजी एवं दृष्टि के संयोग से भारत में खेलों के वातावरण को सम्पूर्ण बना सकते हैं।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित देश गौरव सेकरी के लेख पर आधारित। 16 जून, 2018