स्वास्थ्य सेवा के भविष्य में तकनीकों की भूमिका
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का बोलबाला विश्व के सभी क्षेत्रों में होता जा रहा हैं। इसकी मदद से स्वास्थ्य सेवाओं के बाजार के 2021 तक बहुत आगे बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। 2022 तक भारतीय स्वास्थ्य सेवा के 372 अरब डॉलर तक बढ़ने की संभावना है। ए आई का लाभ उठाते हुए भारत आज की स्वास्थ्य सेवाओं को ‘भविष्य के हैल्थ-टेक’ में परिवर्तित कर सकता है।
- ए आई के अंतर्गत मशीनी प्रयोग और बिग डाटा को अपनाकर वर्तमान स्वास्थ्य सेवाओं की कीमतों में कमी लाई जा सकती है। बिग डाटा को स्वास्थ्य के साथ एकीकृत करके स्वास्थ्य सुरक्षा में 100 अरब डॉलर प्रतिवर्ष बचाया जा सकता है। इसके माध्यम से इस क्षेत्र की कंपनियों को जमीनी स्तर से जोड़कर अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
- 2035 तक विश्व की स्वास्थ्य सेवाओं में 12.9 करोड़ स्वास्थ्य कर्मियों की कमी होने वाली है। संज्ञानात्मक कंप्यूटिंग और स्वास्थ्य सेवाओं का एकीकरण इस कमी को भरने में सहायक होगा। ए आई की मदद से विश्व में स्वास्थ्य सेवाओं की मांग को किफायती दरों पर उपलब्ध कराया जा सकेगा। उदाहरण के लिए ‘योर एम डी’, ए आई की मदद से चलने वाली ऐसी निशुल्क स्वास्थ्य सेवा है, जो एल्गोरिइम की मदद से उपभोक्ता के लिए एक व्यक्तिगत स्वास्थ्य मेप तैयार कर देती है।
- ए आई की नैदानिक पहुँच के साथ बीमारी की पहचान की प्रक्रिया से परम्परागत स्वास्थ्य सेवाओं को बहुत लाभ मिलेगा। एल्गोरिइम और बिग डाटा पैटर्न की समीक्षा करके ए आई, बीमारी के निदान और उपचार की योजना बनाकर किसी रोगी की जरूरतों को सुव्यवस्थित कर सकता है। आई बी एम वाटसन पैथ एक ऐसी संज्ञानात्मक कंप्यूटिंग तकनीक है, जो बीमारियों के सटीक निदान में मदद करती है।
- ए आई की क्षमता और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (सप्लाई चेन के घटकों को संपर्क में लाने के लिए बनाई गई डिजीटल तकनीक), रोगी केन्द्रित दृष्टिकोण को लेकर चल रहे हैं, जो उपभोक्ता की जरूरतों पर आधारित हैं। एप्पल इंक ने इन्हीं तकनीकों के माध्यम से अपने उपभोक्ताओं की जीवन पद्धति को बेहतर बनाना शुरू भी कर दिया है। इस डाटा से रोगी का इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकार्ड रखकर उसके सुरक्षात्मक उपचार की सूचना भी प्राप्त की जा सकेगी।
आज स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में विश्व में भारत का 154वां स्थान है। हम ए आई की क्षमता का पूरा लाभ उठाकर स्वास्थ्य सेवाओं का एक ऐसा तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र विकसित कर सकते हैं, जो रोगी की जरूरतों के अनुकूल हो तथा कीमतों को नियंत्रित रखते हुए स्तर को बनाए रखे।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित राणा कपूर के लेख पर आधारित। 22 मई, 2018