02-2-2022) समाचारपत्रों-के-संपादक
Date:02-02-22
Short, Sharp & Smart
FM’s big bet on growth is what India needed
TOI Editorials
Brevity and bravery defined FM Nirmala Sitharaman’s fourth Budget. In ashort speech,she articulated three excellent strategies. First, GoI is taking a big bet on growth by massively pushing capital expenditure, and is ready to risk high inflation. Growth is the priority now, and most inflation will be via higher energy and commodity prices, over which GoI has little control. Will RBI scupper the growth party? Remember, it has frequently called for fiscal heavy lifting. As inflation rises – retail fuel prices will start rising again after the election hiatus – RBI’s MPC may want to increase rates. But that should be done gently. Sharp rate hikes will affect growth without bringing down cost-push inflation. Second, FM was also clear that public capex is needed to spur private investment, which is still low. To further encourage private investment, the Budget offers stability in the direct tax regime. No bad taxes are actually an incentive. Third, she acknowledged that economic recovery is uneven by extending credit guarantee for MSMEs and focussing, within that, on the badly hurt contact-intensive services.
Commendably, the Budget math is realistic. Nominal GDP is expected to grow 11. 1% in 2022-23 to Rs 258 lakh crore. Consequently, gross tax revenue is expected to increase 9. 6% over the ongoing year’s revised estimate to Rs 27. 5 lakh crore. Total expenditure is budgeted to increase by a modest 4. 6% to Rs 39. 4 lakh crore. The interesting question is how FM has found the money for the huge hike in capex. First, via increase in tax revenue. Second, there’s a big switch from welfare spending to investment. Allocation towards food subsidy and MGNREGA together have been lowered by about Rs 1. 05 lakh crore. In addition, spending on vaccines and Air India will fall in 2022-23, thereby freeing up resources that will be spent on roads and railways. There are two assumptions here. First, there will be no more shocks. Second, growth will reduce the need for high-level targeted support. Those critiquing cuts in welfare spend should remember that GoI can always spend out-of-Budget if the need arises.
What to make of the 30% tax on gains from crypto assets? Postbudget, FM said taxing gains on digital assets doesn’t mean legalising them. That’s correct in the sense that any gain in income can be taxed. But it is reasonable to think that having brought crypto assets under the taxation regime, GoI will subsequently declare the underlying asset to be legal. Therefore, unless there’s a nasty surprise, the Budget has made the first move towards accepting the reality of crypto assets. That’s a smart call, as is making the new tax applicable from March 2023. This will give time to crypto asset holders to adjust their portfolios. The crypto move aside, if RBI launches its digital currency in the next financial year, India will have moved up the blockchain technology ladder.
Disappointments? GoI seems to have lost enthusiasm for privatisation, perhaps fearing it can become an electoral liability. But then again, with markets choppy, it’s not the best time to sell assets anyway. There’s plenty that’s good in this Budget – if GoI can spend all the capex it has budgeted for.
Date:02-02-22
वृद्धि को रफ्तार देने वाला बजट
धर्मकीर्ति जोशी, ( लेखक क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री हैं )
बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की राजकोषीय रणनीति से स्पष्ट है कि पिछले बजट की तुलना में इस बार आर्थिक परिदृश्य काफी कुछ बदला हुआ है। यह बजट एक प्रकार से आर्थिक मोर्चे पर हो रहे सुधार को रफ्तार देने वाला है। इसे बनाने से पूर्व सबसे बड़ी चुनौती यही संतुलन साधने की थी कि अर्थव्यवस्था की वृद्धि संबंधी संभावनाओं को भुनाने में सरकारी खर्च बढ़ाने और कोविड महामारी से उपजी आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए क्या उपाय किए जाएं। ऐसे में बजट के समग्र राजकोषीय रुझान एवं उसके व्यय की दिशा के निहितार्थों को समझना होगा। जीडीपी के 6.9 प्रतिशत के बराबर रहा राजकोषीय घाटा जरूर अनुमान से अधिक है। यह 17.6 प्रतिशत की अनुमानित (नामिनल) जीडीपी वृद्धि में कर संग्र्रह में अप्रत्याशित तेजी एवं जीएसटी प्रक्रिया के और सुसंगत होने के बावजूद हुआ है। यदि विनिवेश में शिथिलता न आई होती तो घाटे को लेकर तीर सटीक निशाने पर ही लगा होता।जहां तक राजकोषीय नीति की बात है तो हाल-फिलहाल से लेकर आगामी वित्त वर्ष के लिए वह व्यापक रूप से वृद्धि को समर्थन देने वाली दिख रही है। आगामी वित्त वर्ष के लिए सरकार ने बेहद संकुचित भाव से अनुमानित जीडीपी की 11.1 प्रतिशत वृद्धि दर के आधार पर राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 6.4 प्रतिशत रखा है। विगत दो वर्षों का अनुभव यही दर्शाता है कि कोविड की अनुवर्ती लहर आर्थिक रूप से कम घातक सिद्ध हुई हैं। व्यापक टीकाकरण और वायरस के साथ जीने की सहज वृत्ति विकसित होने को इसका श्रेय जाता है। इससे वृद्धि को भी व्यापक स्वरूप लेने में सहायता मिलेगी।
राह में कुछ चुनौतियां भी हैं। जैसे कच्चे तेल की कीमतों का रुख, सुस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था, भू-राजनीतिक गतिविधियां एवं टकराव। मौजूदा पड़ाव पर ये वृद्धि के लिए जोखिम उत्पन्न कर रहे हैं। फिर भी यही उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष में अनुमानित जीडीपी वृद्धि दर जहां 12 से 13 प्रतिशत के दायरे में रहेगी वहीं वास्तविक वृद्धि 7.8 प्रतिशत रह सकती है। कर संग्रह लक्ष्य में भी तेजी के आसार हैं। वित्त मंत्री ने कहा है कि वर्ष 2025-26 में राजकोषीय घाटा घटकर जीडीपी के 4.5 प्रतिशत तक आ सकता है। यह फिर भी महामारी पूर्व 3.3 प्रतिशत के आंकड़े से ऊंचा होगा। ऐसे में ध्यान रखना होगा कि अधिक खर्च की तात्कालिक आवश्यकता एवं चरणबद्ध तरीके से ऋण और घाटे को घटाने पर कोई लापरवाही न की जाए। आखिर अपने समकक्ष देशों में भारत का जीडीपी के अनुपात में ऋण का स्तर सबसे ऊंचा है।
सरकार ने खर्च बढ़ाकर महामारी से प्रभावित तबके को राहत प्रदान करने का प्रयास किया है। इससे मांग भी स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी। इस लिहाज से यह कदम सकारात्मक ही कहा जाएगा। वर्ष 2021-22 में भारतीय घरेलू उपभोग तीन प्रतिशत रहा, जो 2019-20 से कम था। उपभोग में कमी का मौजूद चक्र वास्तव में आय असमानता का एक परिणाम है, जिसे महामारी ने और बढ़ाने का काम किया, जहां अमीर और अमीर, जबकि गरीब और गरीब होते दिखे। महामारी की एक के बाद एक लहर को काबू करने के लिए लगे प्रतिबंध, शारीरिक दूरी और पनपे खौफ के कारण निम्न आय वर्ग विशेषकर छोटे उद्यमों, असंगठित क्षेत्र और कांटेक्ट आधारित सेवाओं में सक्रिय लोग बुरी तरह प्रभावित हुए और उनकी क्रय शक्ति घटती गई।
इस बीच कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन बढ़िया रहा, किंतु वह ग्रामीण जीडीपी का महज एक तिहाई हिस्सा भर है। साथ ही अब किसानों की आधी से अधिक आमदनी गैर-कृषि गतिविधियों से आती है। दोपहिया वाहनों की कमजोर मांग के अलावा कृषि एवं गैर-कृषि ग्रामीण मजदूरी में आ रही गिरावट भी कमजोर ग्रामीण मांग को दर्शाती है। सरकार ने इस बजट में मनरेगा के लिए पिछले वर्ष की तुलना में कम राशि आवंटित की है। ऐसे में यदि इस मद में खर्च बढ़ाने की आवश्यकता पड़े तो सरकार को लचीला रुख दिखाना होगा। एमएसएमई के लिए इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम का आवंटन बढ़ाकर सरकार ने ऐसे लचीलेपन के संकेत भी दिए हैं। इससे उपभोग को परोक्ष समर्थन मिलेगा। प्रधानमंत्री आवास योजना और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए बढ़ा आवंटन भी रोजगार सृजन एवं घरेलू उपभोग को बढ़ाने में मददगार होगा। इससे हाशिये पर मौजूद लोगों को बड़े पैमाने पर नौकरियां मिलेंगी, क्योंकि ये दोनों योजनाएं न केवल अधिक श्रम खपत वाली हैं, बल्कि अकुशल कर्मियों के लिए रोजगार का एक प्रमुख माध्यम भी हैं। उपभोग चक्र को निर्णायक गति देने में इन प्रयासों के अतिरिक्त आर्थिक गतिविधियों में भी व्यापक तेजी की आवश्यकता होगी, जिसमें यह देखना होगा कि कोविड महामारी की कोई भावी लहर इस मौजूदा लहर से अधिक गतिरोध न उत्पन्न करे।
शहरी गरीबों को भी सहारा दिया जाना आवश्यक है, क्योंकि महामारी ने शहरों में जिन कांटेक्ट आधारित सेवाओं पर आघात किया, उनमें दो-तिहाई ऐसे ही लोग कार्यरत हैं। इसके अलावा गरीब ग्रामीणों की तुलना में उन्हें महंगाई की तपिश भी अधिक झेलनी पड़ती है। ऐसे में उनकी मदद के लिए किसी कारगर उपाय के अभाव में अपनी आमदनी में स्थायी वृद्धि के लिए उन्हें व्यापक आर्थिक वृद्धि की प्रतीक्षा करनी होगी। आमजन को राहत देने के लिए सरकार के पास पेट्रोलियम उत्पादों पर शुल्क कटौती का विकल्प थार्, किंतु तंग राजकोषीय गणित इसकी गुंजाइश नहीं देता। यदि कच्चे तेल के दाम कुछ ज्यादा चढ़ते हैं तो सरकार को जरूर कुछ उपाय करने पड़ सकते हैं।
बुनियादी ढांचा केंद्रित पूंजीगत व्यय में सरकार ने 25 प्रतिशत की भारी बढ़ोतरी की है। साथ ही निवेश के लिए राज्यों का आवंटन भी बढ़ाया है। चूंकि निजी निवेश अभी तक पटरी पर नहीं लौटा है तो यह कदम महत्वपूर्ण है। निवेश की बेहतर स्थिति में होने के बावजूद निजी क्षेत्र अनिश्चितता या अतीत की तेजी में अतिरेक निवेश के कारण फिलहाल नया दांव लगाने से हिचक रहा है। वित्त मंत्री ने अपने भाषण में यह स्वीकार भी किया। बुनियादी ढांचे में सरकारी निवेश के अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव होंगे। इससे आर्थिक वृद्धि को संबल मिलने के साथ ही निजी निवेश को बढ़ाने के सरकारी प्रयासों को अपेक्षित प्रतिक्रिया मिल सकेगी। अब अगली चुनौती निवेश की इन योजनाओं के सुगम क्रियान्वयन की है, क्योंकि पूर्व में हुई हीलाहवाली ने लागत बढ़ाने के साथ ही परियोजनाओं को विलंबित भी किया है।
Date:02-02-22
खपत और रोजगार बढ़ाने पर जोर
डा. जयंतीलाल भंडारी, ( लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं )
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोना से उबरती अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के लिए एक व्यावहारिक और सार्थक बजट प्रस्तुत किया है। इसके लिए राजकोषीय घाटे को बढ़ाने से भी कोई संकोच नहीं किया है। व्यापक रणनीतिक प्रविधानों से अर्थव्यवस्था को विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया है। वित्त मंत्री को विश्वास है कि वित्त वर्ष 2022-23 में व्यापक वैक्सीन कवरेज, आपूर्ति-पक्ष सुधार और नियमों में ढील से विकास को गति मिलेगी। सार्वजनिक निवेश के साथ निजी क्षेत्र का निवेश अच्छी स्थिति में रहेगा।
बजट में खेती और किसानों के हितों को उच्च प्राथमिकता दी गई है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के मद्देनजर कृषि में निजी निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दिए गए हैैं। प्राकृतिक खेती और मांग आधारित खेती को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष घोषणा की गई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर की जाने वाली सरकारी खरीद के लिए 2.37 लाख करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए नए प्रविधान किए गए हैैं। कृषि उत्पादों की मार्केटिंग, ब्रांडिंग और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बड़े एलान किए गए हैं। वित्त मंत्री ने बुनियादी ढांचे पर पूंजीगत व्यय बढ़ाकर आर्थिक गतिविधियों, खपत और नौकरियों के सृजन को बढ़ावा देने की रणनीति अपनाई है। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 7.5 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय का लक्ष्य रखा है। यह जीडीपी का 2.9 प्रतिशत है। बजट में सौर ऊर्जा सेक्टर को लेकर भी बड़ी घोषणा हुई है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पीएम आवास योजना के तहत 80 लाख घरों के निर्माण को पूरा करने के लिए 48 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। किफायती आवास, रियल एस्टेट और निर्माण पर सरकार ने जोर दिया है।
सरकार चाहती है कि आने वाले वर्षों में भारत विश्व का मैन्यूफैक्चरिंग हब बनकर उभरे। इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए वित्त मंत्री ने बजट में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के लिए बड़े एलान किए हैं। श्रम आधारित कृषि क्षेत्र और सूती वस्त्र उद्योगों को बड़े प्रोत्साहन दिए गए हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत बजट में पीएलआइ (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन) योजना को गतिशील करने के लिए आवंटन बढ़ाए गए हैं। इससे चीन और अन्य देशों से कच्चे माल और विभिन्न वस्तुओं के आयात को कम किया जा सकेगा। वित्त मंत्री ने रिकार्ड निर्यात का लक्ष्य रखते हुए विभिन्न कच्चे माल पर आयात शुल्क घटाया हैै। ये आयात शुल्क ऐसी चीजों के कच्चे माल पर घटाए गए हैं, जिनका पीएलआइ क्षेत्र के उद्योगों में उपयोग होता है। बजट में वोकल फार लोकल को बढ़ावा देने के साथ-साथ सावरेन ग्रीन बांड लाने का भी प्रस्ताव है।
वित्त मंत्री ने देश में खुदरा कारोबार और स्टार्टअप को प्रोत्साहन देने तथा कारोबार करने के लिए आवश्यक लाइसेंस की संख्या घटाकर उनका अनुपालन बोझ हल्का करने का निर्णय लिया है। स्टार्टअप के लिए टैक्स छूट 31 मार्च, 2023 तक बढ़ाई गई है। एमएसएमई सेक्टर को दो लाख करोड़ रुपये का विशेष राहत पैकेज दिया गया है। विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के विकल्प की घोषणा कर उसे अधिक उपयोगी बनाने की बात कही है। आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना को मार्च 2023 तक बढ़ाया गया है। गारंटी कवर को भी पांच लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाया गया है। इससे उद्योगों में पूंजी की राह आसान होगी। बजट में केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय के गठन की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने और सहकारी संस्थाओं को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष प्रविधान किए गए हैं। कोआपरेटिव सोसायटी के लिए मैट की दर घटाकर 15 फीसद की गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती देने के लिए रक्षा बजट और रक्षा अनुसंधान में बड़ा इजाफा किया गया है।
हालांकि बजट के समक्ष कई चुनौतियां भी दिखाई दे रही हैं। दरअसल बजट अनुमान कच्चे तेल की 70-75 डालर प्रति बैरल की कीमत पर आधारित हैं। जबकि इस समय कच्चे तेल की कीमतें करीब 90 डालर प्रति बैरल के आसपास हैं। इसके 100 डालर प्रति बैरल से अधिक के स्तर पर पहुंचने की आशंका है। अर्थव्यवस्था के समक्ष महंगाई बढऩे और कमजोर मांग की भी चुनौती है। एक चुनौती कई सरकारी विभागों को किए गए भारी भरकम आवंटन को उपयुक्त रूप से खर्च करने की है। देश की अर्थव्यवस्था को वित्त वर्ष 2024-25 तक पांच लाख करोड़ डालर तक पहुंचाने के लिए अगले तीन वर्षों के दौरान बुनियादी ढांचा क्षेत्र में करीब 105 लाख करोड़ रुपये का निवेश करना पड़ेगा, लेकिन इतना धन जुटाना सरल नहीं होगा। चूंकि बजट अगले 25 वर्षों का ब्लूप्रिंट है, अत: इस दौरान आर्थिक और सामाजिक सशक्तता के लिए व्यापक निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए बड़े प्रयास करने होंगे। बजट में छोटे करदाताओं और मध्यम वर्ग को इनकम टैक्स से राहत नहीं मिली है। यह वर्ग अपनी क्रयशक्ति बढ़ाने के लिए सरकार से इसकी अपेक्षा कर रहा था। एक बड़ी चुनौती निजीकरण, विनिवेश और संपत्ति मौद्रीकरण के जरिये अतिरिक्त संसाधन जुटाए जाने के ऊंचे लक्ष्यों को प्राप्त करने की भी है।
कुल मिलाकर आम बजट से अर्थव्यवस्था में सुधार का मजबूत रास्ता बनेगा और रोजगार के नए अवसर बनेंगे। हम उम्मीद करें कि इससे आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ेगी, नई मांग का निर्माण होगा और अर्थव्यवस्था की गतिशीलता बढ़ेगी। साथ ही आगामी वित्तीय वर्ष 2022-23 में देश की विकास दर दुनिया में अव्वल दिखाई दे सकेगी।
Date:02-02-22
बजट में डिजिटल मुद्रा और क्रिप्टो कर की शुरुआत
मुकेश बुटानी ( मैनेजिंग पार्टनर ) और दिव्याशा माथुर ( सीनियर एसोसिएट ) , बीएमआर लीगल एडवोकेट्स से संबद्ध हैं।
क्या भारत आभासी मुद्राओं (क्रिप्टोकरेंसी) के खिलाफ है? क्या सरकार कर अधिकारियों एवं जांच एजेंसियों को क्रिप्टोकरेंसी के नियमन एवं इनके कराधान के लिए आवश्यक ढांचा निर्धारित करने की अनुमति देगी? हाल में समाचार माध्यमों में ऐसे कई प्रश्न पूछे गए थे। इस विषय पर सरकार पर निष्क्रियता दिखाने के आरोप लगते रहे हैं। कारोबार सरकार से स्पष्ट निर्देश मिलने की उम्मीद कर रहा है। अब ऐसा लगता है कि वित्त मंत्री ने इस दिशा में कदम उठाया है और क्रिप्टोकरेंसी पर कर लगाने के लिए ढांचा पेश किया है। इस ढांचे की सूक्ष्म बातें और कराधान के अलावा वित्त मंत्री का यह कदम सराहनीय है। यह कम से कम इस बात का संकेत जरूर दे रहा है कि सरकार की कर नीति अब स्पष्ट होती जा रही है और पहले की तरल अस्पष्ट और क्रियान्वयन के लिहाज से जटिल नहीं रह गई है।
नीतिगत लिहाज से बजट में किए गए इस उपाय की प्रशंसा की जानी चाहिए। बजट में वित्त मंत्री ने कर कानून में जिस तरह ‘आभासी डिजिटल परिसंपत्ति’ (वर्चुुअल डिजिटल ऐसेट्स) शब्द का जिक्र किया है वह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यह कानूनी प्रावधान केवल खास मकसद को पूरा करने तक सीमित नहीं रहेगा और आने वाले समय में भी क्रिप्टोकरेंसी खंड में बदलती परिस्थितियों के अनुरूप और कई उपाय किए जाएंगे। शुरुआत में इस घोषणा में सभी क्रिप्टो परिसंपत्तियां शामिल की गई हैं। इसके अलावा नॉन-फंजीबल टोकन (एनएफटी) भी खास तौर पर शामिल किए गए हैं। तेजी से बदलते हालात से निपटने के लिए सरकार को पर्याप्त अवसर और समय देने के वास्ते इस कानूनी ढांचे में दूसरी प्रकार की डिजिटल परिसंपत्तियां भी अधिसूचित कर सकती हैं। इनमें उन परिसंपत्तियों को बाहर रखा गया है जो इस दायरे में रखे जाने के लिए उपयुक्त नहीं समझी जाती हैं। इस तरह, सरकार के पास नियामकीय मोर्चे पर बदलती परिस्थितियों के अनुरूप उपाय करने के लिए काफी गुंजाइश बची हुई है।
क्रिप्टो परिसंपत्तियों को पूंजीगत लाभ के दायरे में रखा गया है। पूंजीगत लाभ पर कर नीति को सभी परिसंपत्तियों पर कराधान के लिए एक बुनियादी उपाय के तौर पर देखा जाता है। इसके अलावा करदाताओं को इन परिसंपत्तियों से प्राप्त आय को कारोबार से प्राप्त आय के रूप में दिखाने और क्रिप्टोकरेंसी कारोबार में हुए नुकसान की भरपाई दूसरी परिसंपत्ति श्रेणियों के बदले करने से रोकने की योजना भी लाई गई है। नई योजना के तहत क्रिप्टोकरेंसी के स्थानांतरण से प्राप्त मुनाफे पर आयकर का भुगतान करना होगा और केवल ऐसी परिसंपत्तियां खरीदने पर आने वाले खर्च को इस दायरे से बाहर रखा जाएगा। वित्त मंत्री ने कहा है कि ऐसे लाभ पर 30 प्रतिशत दर से कराधान होगा। संक्षेप में कहें तो कोई व्यक्ति क्रिप्टोकरेंसी की बिक्री या स्थानांतरण से जितना लाभ अर्जित करेगा उनमें एक तिहाई हिस्सा सरकार के पास जाएगा। नुकसान की भरपाई आगे करने की अनुमति नहीं होगी और न ही कर कटौती का लाभ मिलेगा। इसके अलावा कर कटौती के लिए विशेष प्रावधान लाए जाएंगे। संभवत: इनका उद्देश्य रकम की आमद पर नजर रखना और कर अनुपालन सुनिश्चित करना होगा।
हालांकि सरकार का यह कदम आय कर तक ही सीमित नहीं है और इसने क्रिप्टोकरेंसी के नियमन का ढांचा तैयार करने की प्रक्रिया को भी आगे बढ़ा दिया है। बजट में वित्त मंत्री की इस घोषणा को दो पूर्व में हुईं अन्य दो घोषणाओं से अलग कर देखा जाना चाहिए। यह डिजिटल रुपये की शुरुआत से संबंधित है। यह दर्शाता है कि क्रिप्टो को क्रिप्टो परिसंपत्तियों के साथ जोड़ा जाएगा। दूसरी घोषणा इसका इस्तेमाल डिजिटल दायरे से बाहर उन क्षेत्रों में बढ़ाने से संबधित है। इनमें जमीन से जुड़ी जानकारियों और नागरिकों के स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों का डिजिटलीकरण किया जाना शामिल हैं। इसमें कोई शक नहीं कि क्रिप्टोकरेंसी के लिए नियमन तैयार करते वक्त निजता कानून एवं स्थानीय स्तर पर डेटा के संरक्षण से जुड़ी बातों को भी ध्यान में रखना होगा। इसके अलावा कोई कदम बढ़ाने से पहले नागरिकों के मौलिक अधिकारों की परिधि पर भी विचार करना होगा।
सच्चाई यह है कि यह एक ऐसी कर नीति है जिसकी अभी शुरुआत हुई है और यह दर्शाती है कि यह भारत में एक ऐसा कर कानून होगा जो क्रिप्टो परिसंपत्तियों के नियमन का ढांचा तय करेगा। एक अन्य संबंधित बात यह है कि बजट में क्रिप्टो परिसंपत्तियों को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से नहीं जोड़ गया है मगर यह ढांचा जीएसटी परिषद के दायरे में आ सकता है। वित्त मंत्री जीएसटी परिषद की सदस्य होती हैं इसलिए यह नहीं मानना चाहिए कि क्रिप्टो परिसंपत्तियों पर कर लगाने के लिए अप्रत्यक्ष कर योजना लाने में काफी देर लग जाएगी। वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में क्रिप्टोकरेंसी निवेशकों को यह स्पष्ट इशारा दे दिया गया है कि आने वाले समय में तस्वीर कैसी रह सकती है। कर बोर्ड और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से स्पष्टीकरण भी आ सकते हैं। इस तरह, 2022 को एक ऐसे वर्ष के रूप में याद किया जाएगा जब क्रिप्टो अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने की शुरुआत हुई है।
Date:02-02-22
बजट में बुनियादी ढांचे पर दिया गया ध्यान
शुभाशिष गंगोपाध्याय, ( लेखक आईडीएफ में अनुसंधान निदेशक हैं )
यदि कर बढ़ोतरी को छोड़ दिया जाए तो बजट भाषणों की उन बातों के लिए शायद ही कभी आलोचना की जाती है जो संसद में उन्हें पढ़ते हुए कही जाती हैं। परंतु बजट भाषण की उन बातों को लेकर प्राय: हमेशा ही आलोचना की जाती है जो बातें उनमें शामिल नहीं की जातीं। यह बात बजट भाषण के भाग ए पर खासतौर पर लागू होती है जहां वित्त मंत्री उन सकारात्मक कदमों की सूची पेश करते हैं जो सरकार आने वाले वर्ष में देश से जुड़ी चुनिंदा चिंताओं को दूर करने के लिए उठाने वाली होती है।
चूंकि संसाधन सीमित हैं इसलिए वित्त मंत्री के सामने यह चुनौती भी रही कि कैसे विभिन्न समूहों के हितों के बीच संतुलन कायम किया जाए। ऐसे में बजट का आकलन करने के लिए यह देखना उचित होगा कि सरकार ने अपने लिए कौन सी प्राथमिकताएं तय की हैं। उसके बाद यह देखना होगा कि मंत्री ने उन्हें हासिल करने के लिए क्या राह चुनी है।
वित्त मंत्री ने बजट भाषण का अहम हिस्सा बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करते हुए पढ़ा। राष्ट्रीय स्तर का बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए केंद्र सरकार सबसे अच्छी एजेंसी है इसलिए मंत्री की विविध मॉडल आधारित बुनियादी ढांचा और लॉजिस्टिक्स को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता सराहनीय है। देश में बुनियादी विकास की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में निवेश निजी क्षेत्र को भी आकर्षित करता है, कारोबारी सुगमता की लागत कम करता है तथा नई किफायती आर्थिक गतिविधियों की राह प्रशस्त करता है।
ऐसे में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश न केवल प्रत्यक्ष रोजगार तैयार करता है बल्कि इससे अप्रत्यक्ष रोजगार भी तैयार होते हैं। मेरी दृष्टि में भारत की पहली प्राथमिकता है रोजगार तैयार करना। महामारी के दौरान कई लोगों के रोजगार छिन गए, कई लोग जिनके रोजगार या आजीविका पूरी तरह नहीं छिने उनकी आय भी बीते दो वर्षों में काफी कम हुई है। अब जबकि हम आशा कर रहे हैं कि हम कोविड के बाद के दौर में प्रवेश कर रहे हैं, तब हमें न केवल अपने रोजगार दोबारा हासिल करने होंगे, बल्कि तेज गति से नए रोजगार भी तैयार करने होंगे ताकि महामारी के पहले का स्तर हासिल किया जा सके।
देश में युवाओं की तादाद बहुत ज्यादा है और वे चाहते हैं कि उन्हें रोजगार मिले। बुनियादी ढांचे के साथ स्वास्थ्य एवं पर्यटन अथवा स्वागत उद्योग भी रोजगार की काफी संभावना समेटे हुए क्षेत्र हैं। वित्त मंत्री ने दो बार पर्यटन का जिक्र किया: एक बार रोपवे बनाने की बात करते हुए और दूसरी बार जब उन्होंने 50,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आपात ऋण लाइन गारंटी योजना का उल्लेख किया जो खासतौर पर आतिथ्य और संबद्ध गतिविधियों के लिए है। यह अच्छा कदम है।
खेद की बात है कि स्वास्थ्य का जिक्र करते हुए उन्होंने केवल यह बताया कि कैसे स्वास्थ्य व्यवस्था को डिजिटल बनाया जा रहा है। इस डिजिटलीकरण के तीन सकारात्मक पहलू हैं। पहला, इससे स्वास्थ्य सेवाएं किफायती होंगी क्योंकि इससे न केवल व्यक्तियों बल्कि समुदाय के स्तर पर भी चिकित्सा का रिकॉर्ड तैयार होगा। इससे वर्तमान चिकित्सा प्रोटोकॉल को बेहतर बनाया जा सकेगा और साथ ही नए और प्रभावी प्रोटोकॉल के लिए चिकित्सा शोध किया जा सकेगा। दूसरा, इससे स्वास्थ्य प्रशासन को मदद मिलेगी, कोविन तथा टीकाकरण के अनुभव से हम यह देख चुके हैं। तीसरा, यह मानव संसाधन की आपूर्ति की कमी की समस्या को भी दूर करेगा। महामारी के दौरान टेली-मेडिसन को कानूनी समर्थन भी मिला और अब दूरदराज स्थित लोगों को समय पर चिकित्सा मुहैया कराना संभव है। बहरहाल, यदि रोजगार तैयार करना प्राथमिकता है तो मानव संसाधन में कमी दूर करने के लिए हमें स्वास्थ्य क्षेत्र में मानव संसाधन तैयार करना चाहिए।
मेरा तात्पर्य केवल चिकित्सकों और परिचारिकाओं से नहीं है क्योंकि उनमें तो वैसे भी प्रशिक्षण के बाद देश छोडऩे की प्रवृत्ति है। हमें हर प्रकार के पराचिकित्सकों (चिकित्सा सहायकों) की भी आवश्यकता है जिनमें से कुछ को जल्दी प्रशिक्षित करके उनकी सेवा ली जा सके। स्वास्थ्य क्षेत्र अर्थव्यवस्था के साथ विकसित होता है और आबादी के हर हिस्से में इसकी स्थिर मांग रहती है।
पैराग्राफ 51 के पहले वित्त मंत्री ने बताया कि गत दो वर्षों में किस प्रकार स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार हुआ है। यह सच है और हम शायद वायरस की तीसरी लहर से निपटने के लिए बेहतर तैयारी में हैं। परंतु ये सुधार विशिष्ट आपात स्थिति के लिए हैं। वास्तव में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए सुविचारित और नीतिगत तेजी की जरूरत है।
मैं रोजगार वाले क्षेत्रों पर इसलिए जोर दे रहा हूं क्योंकि लोगों ने आय और रोजगार गंवाए हैं। इसका असर वस्तुओं और सेवाओं की मांग पर पड़ा और कई उपक्रमों को नुकसान हुआ। सूक्ष्म और लघु उपक्रमों को उत्पादन प्रोत्साहन तथा सस्ता ऋण मुहैया कराने भर से वे दोबारा काम नहीं शुरू कर देंगे। उन्हें यह भरोसा होना चाहिए कि उनका उत्पाद बिकेगा। इसके लिए जरूरी है कि खरीदारों के पास पैसा हो, तभी मांग बढ़ेगी।
प्रथमदृष्टया मुझे इस बजट में ऐसा कुछ भी नहीं लगा जिसे मैं सीधे खारिज कर सकूं। मैं वित्त मंत्री द्वारा कुछ घोषणाओं को रेखांकित किए जाने वाले के रुख से अवश्य चिंतित हूं। सन 1991 के बाद हम बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़े हैं जहां सरकार बाजार में भागीदारी करने के बजाय केवल सहूलियत प्रदान करती है। खेद की बात है कि इस स्थिति में कुछ बदलाव दिख रहा है। ग्रीन बॉन्ड का उदाहरण लेते हैं। सन 2022-23 में अपनी बाजार उधारी के हिस्से के रूप में केंद्र सरकार सॉवरिन ग्रीन बॉन्ड लाएगी। इस तरह जुटाई गई राशि का इस्तेमाल सार्वजनिक उपक्रमों में कार्बन उत्सर्जन कम करने में किया जाएगा। इस पैसे का इस्तेमाल पूरी अर्थव्यवस्था (निजी-सार्वजनिक दोनों) में कार्बन का इस्तेमाल कम करने में क्यों नहीं होना चाहिए?
डिजिटलीकरण की कवायद को लेकर भी मुझे यही दिक्कत है। क्या वे सभी सार्वजनिक डिजिटल ढांचे हैं या उनमें से कुछ निजी नवाचार की संभावनाओं को क्षति पहुंचा रहे हैं? सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे में किया जाने वाला निवेश चाहे वह डिजिटल हो या अन्य तरह का, उसे कारोबार का उपाय होना चाहिए, न कि स्वयं कारोबार। कारोबार को निजी क्षेत्र के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। बहरहाल, ये मसले सालाना बजट पर होने वाली चर्चा के दायरे के बाहर के हैं।
Date:02-02-22
भूमि संरक्षण का एक और संकट
वेंकटेश दत्ता
पर्यावरण विज्ञानियों के सामने इस वक्त एक बड़ी चिंता आर्द्र भूमि (वेटलैंड) के संरक्षण को लेकर उभरी है। धरती के पर्यावरण में नम या आर्द्र भूमि की अहमियत वैसे ही है जैसे शरीर में गुर्दे की। नम भूमि ही धरती के भीतर मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आर्द्र भूमि जैव विविधता से लेकर मीठे पानी के जलाशयों, कार्बन अवशोषण और आजीविका का भीबड़ा स्रोत मानी जाती है। ऐसे में यदि आर्द्र भूमि खत्म होती जाएगी तो धरती पर नए तरह का संकट खड़ा हो जाएगा।
भारत में आर्द्र भूमि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 4.7 फीसद है। जाहिर है, यह काफी कम है और इसलिए इसका संरक्षण कहीं ज्यादा जरूरी हो गया है। वैसे दुनियाभर में आर्द्र भूमि पर संकट गहराता जा रहा है। इसलिए इसे बचाने के लिए पहली बार दो फरवरी 1971 को ईरान के रामसर शहर में वैश्विक सम्मेलन बुलाया गया था और दुनियाभर में फैली आर्द्र भूमि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी गई थी। अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की लगभग दो हजार चार सौ आर्द्रभूमियों में से सैंतालीस भारत में हैं और उन्हें रामसर स्थल कहा जाता है। ये विश्व स्तर पर प्रमुख संरक्षित स्थलों में से हैं। ईस्ट कलकत्ता आर्द्र भूमि, पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के पूर्व में स्थित प्राकृतिक और मानव निर्मित आर्द्र भूमि का एक बड़ा परिसर है जो एक सौ पच्चीस वर्ग किलोमीटर में फैला है। यहां कृषि क्षेत्र, सीवेज फार्म और कई तालाब हैं। इस आर्द्र भूमि का उपयोग कोलकाता के सीवेज शोधन के लिए भी किया जाता है, और अपशिष्ट जल में निहित पोषक तत्व मछलियों की आबादी और कृषि को बनाए रखता है। इसी तरह नौ रामसर स्थलों के साथ उत्तर प्रदेश देश में ऐसी आर्द्र भूमि वाला दूसरा बड़ा राज्य है। उत्तर प्रदेश में गंगा नदी क्षेत्र का एक अद्वितीय और विशाल पारिस्थितिक तंत्र है जो पौधों और जानवरों की समृद्ध विविधता को बरकरार रखता है। इसमें तालाबों, झीलों और आर्द्र भूमि का एक बड़ा क्षेत्र है। मछलियों की जैव विविधता में उत्तर प्रदेश का योगदान 14.11 फीसद का का है, और इनमें से बहुत से इन आर्द्र भूमि से आते हैं। उत्तर प्रदेश में गंगा के बाढ़ के मैदान का लगभग पांच फीसद हिस्सा आर्द्र भूमि से ढका है। बृजघाट से नरोरा तक ऊपरी गंगा नदी भी एक रामसर स्थल है। हैदरपुर आर्द्र भूमि क्षेत्र भारत में सबसे नया रामसर स्थल है जिसे दिसंबर 2021 में ही इस शृखंला में जोड़ा गया था। यह भूमि क्षेत्र मध्य गंगा बैराज के साथ गंगा नदी के बाढ़ के मैदानों पर बिजनौर जिले में 6908 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है।
इस वर्ष विश्व आर्द्र भूमि दिवस की विषयवस्तु ‘लोगों और प्रकृति के लिए आर्द्र भूमि’ है। यह वैश्विक आह्वान दुनिया भर में आर्द्र भूमि को बचाने के लिए किया गया है। इसरो ने उपग्रह से प्राप्त चित्रों से इसका एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण भी किया है। इसके अनुसार उत्तर प्रदेश में लगभग 27181 आर्द्र भूमि क्षेत्र हैं जो लगभग 63,525 हेक्टेयर क्षेत्र बनाते हैं। इनमें से लगभग चालीस फीसद आर्द्र भूमि क्षेत्र सौ हेक्टेयर से अधिक आकार के हैं। अकेले हरदोई जिले में दो हजार से अधिक आर्द्र भूमि क्षेत्र हैं। तटीय इलाकों में नमी क्षेत्र और बैकवाटर मैंग्रोव के जंगलों का महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जहां लोग भोजन, ईंधन, चारा और आवास के लिए इन पर निर्भर हैं। पारंपरिक मछुआरे आज भी अपनी स्थायी आजीविका के लिए पूरी तरह से मछली और शंख जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं।
शहरीकरण, प्रदूषण, अतिक्रमण और गहन कृषि के कारण भू-उपयोग में बदलाव के कारण भारत में आर्द्र जमीन का अस्तित्व खतरे में है। ऐसे कई भू क्षेत्र अपनी पुरानी पहचान खो चुके हैं और उन्हें बदलते परिवेश के अनुसार विकास का दंश झेलना पड़ा है। लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र के कार्य में उनकी मुख्य भूमिका को बदला नहीं जा सकता है। इसलिए मौजूदा जल निकायों की रक्षा करने और आर्द्र भूमि क्षेत्रों को बचाने के लिए उचित संरक्षण रणनीति और सशक्त प्रबंधन योजना बनाने की जरूरत है।
तेजी से हो रहे शहरीकरण और भूमि उपयोग में बदलाव के कारण आर्द्र भूमि का लगातार क्षरण हो रहा है। सिर्फ पिछले एक दशक में हम लगभग तीस फीसद भूमि खो चुके है। उत्तर प्रदेश में ही रायबरेली, हरदोई, लखनऊ, बाराबंकी, सीतापुर और बहराइच जिलों में हजारों एकड़ आर्द्र भूमि है। अकेले रायबरेली ने 1972 से लगभग नवासी फीसद आर्द्र भूमि खो दी है। लखनऊ ने पिछले पांच दशकों में लगभग सत्तर फीसद आर्द्र भूमि खो दी है। गहन सिंचाई के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन आर्द्र भूमि के खत्म होने का कारण बन रहा है। इसके अलावा गन्ना, धान और गेहूं जैसी जल-गहन फसलों के साथ आर्द्र भूमि को कृषि क्षेत्रों में परिवर्तित करना भी है। नहरों और सड़कों के अवैज्ञानिक निर्माण के कारण कई आर्द्र भूमि खंड मानचित्र से गायब हो चुके हैं।
आर्द्र भूमि के संरक्षण के लिए भारत में कोई मजबूत नियामक ढांचा नहीं है। इस समस्या को अभी भी अलग-थलग करके देखा जा रहा है। जल संसाधन प्रबंधन और विकास योजनाओं में शायद ही इसका उल्लेख किया जाता है। ऐसे संवेदनशील पारिस्थितिकीय तंत्रों के प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदारी पर्यावरण और वन मंत्रालय के हाथों में है। हालांकि भारत रामसर सम्मेलन और जैविक विविधता के सम्मेलन दोनों का हस्ताक्षरकर्ता है, लेकिन हैरानी की बात यह कि आर्द्र भूमि के संरक्षण के लिए कोई स्पष्ट नियामक ढांचा नहीं है। हालांकि कुछ राज्यों में आर्द्र भूमि विकास प्राधिकरण बनाए तो गए हैं, लेकिन ये भी अन्य परंपरागत कानूनों के अधीन ही हैं। इस वक्त आर्द्र भूमि को आर्द्र भूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत संरक्षित किया जाता है। आर्द्र भूमि को बचाने की दिशा में पहला और सबसे महत्त्वपूर्ण कदम इसके भूमि दस्तावेज को सुरक्षित करना है। उपग्रह चित्रों और ड्रोन कैमरों का उपयोग करके इनका दस्तावेज बनाया जाना चाहिए। आर्द्र भूमि का जल-प्रसार क्षेत्र मौसम के अनुसार बदलता रहता है। मानसून के समय जल-प्रसार का मापन कर उसे राजस्व रिकार्ड में दर्ज कर देना चाहिए। मानसून के बाद से ग्रीष्मकाल तक आर्द्रभूमि के जल प्रसार क्षेत्र में उल्लेखनीय कमी पाई जाती है जिसका फायदा उठा कर लोग अतिक्रमण करते हैं। मानसून के बाद फैले जल का परिसीमन करके भू-राजस्व अभिलेखों को ठीक से बनाए रखा जाना चाहिए। तालाबों, झीलों और आर्द्र भूमि के पुनरुद्धार के लिए कार्य योजना का निर्माण वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए, न कि तदर्थ उपायों पर। सिंचाई की बेहतर तकनीकों को अपना कर भूजल पर दबाव कम किया जा सकता है। इसके अलावा किसानों को मोटा अनाज उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिसमें बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है।
पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन के लिए एक समग्र वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण की जरूरत होती है। इसमें जनभागीदारी और सहयोग जरूरी है। कई मामलों में स्थानीय समुदायों की उपेक्षा भी ऐसे संकट को बढ़ाती है। आर्द्र भूमि के तट पर रहने वाले समुदाय स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हैं क्योंकि अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए वे पारिस्थितिक तंत्रों पर ही निर्भर हैं। ऐसे में पारिस्थितिकी तंत्र का प्रभावी प्रबंधन एक बड़ी चुनौती बन गया है।
Date:02-02-22
लोक कल्याणकारी बजट
अरविंद मेनन, ( लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव हैं )
आम बजट नये भारत एवं आत्मनिर्भर भारत को समर्पित है। भारतीय जनता पार्टी का मुख्य लक्ष्य रहा है कि देश के हर व्यक्ति का कल्याण सुनिश्चित किया जाए तथा उसको विकास के हरसंभव मौके प्रदान किए जाएं। आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देते हुए यह बजट नागरिकों के अंदर नवचेतना लेकर आएगा। देश के सभी नागरिकों खासकर मध्यम वर्ग‚ युवाओं‚महिलाओं‚किसानों एवं उद्योग जगत को बड़ी उम्मीद रहती है। इनकी उम्मीदों पर खरा उतरना हर सरकार का कर्त्तव्य है‚और भाजपा का यह एक महत्वपूर्ण संकल्प है। यह बजट समग्र कल्याण एवं समावेशी लाभ के लक्ष्य के लिए है। बजट देश के अमृत महोत्सव को समर्पित करते हुए पेश किया गया।
आजादी के 75वें वर्ष में अमृत महोत्सव को समर्पित बजट अगले 25 वर्षों के बुनियादी लक्ष्य को निर्धारित करेगा। बजट में शिक्षा‚रोजगार‚डिजिटलाइजेशन‚इंफ्रास्ट्रक्चर‚ स्वास्थ्य‚उद्योग और कृषि जैसे आम नागरिकों की जरूरत वाले विषयों पर अत्यधिक ध्यान दिया गया है। विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का यह आम बजट कई मायनों में खास बजट है क्योंकि यह कोरोना जैसी महामारी से लड़ते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए पेश किया गया है। पिछले दिनों आईएमएफ ने भारत की ग्रोथ 9 प्रतिशत जबकि आर्थिक सर्वेक्षण ने भी 9.92 प्रतिशत बताई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में मौजूदा वर्ष में भारत की आर्थिक विकास दर 9.2 फीसद रहने का अनुमान जताया है‚ यह दर विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सर्वाधिक है। बजट इसी वृद्धि को जारी रखने‚पिछड़े क्षेत्रों के समावेश‚विभिन्न आर्थिक सेक्टरों को प्रोत्साहन देने एवं बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए है। बजट को भारतीय मार्केट ने भी सकरात्मक रूप से लिया है। बजट सरकार की नीतियों और नीयत‚दोनों के संगठित प्रयास का प्रतिफल है‚जो समाज में बड़े स्तर पर संतुलन स्थापित करने के लिए पेश किया गया है। पिछले बजट में हमारी सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए विशेष प्रावधान किए थे। इस बार कोरोना के कारण प्रभावित क्षेत्रों में विशेष रियायत प्रदान की गई है।
बजट में सबसे सुखद यह रहा कि इसका आरंभ शिक्षा से किया गया। हम जानते हैं कि पिछले वर्षों में कोरोना वायरस से सबसे प्रभावित क्षेत्रों में देश की शिक्षा व्यवस्था रही है। यह बजट 56 मंत्रालय और 102 डिमांड फॉर ग्रांट के लिए है‚जिसमें मुख्य रूप से शिक्षा‚तकनीकी अनुसंधान‚स्वास्थ्य एवं पर्यावरण‚हाइवे‚रेलवे‚किसान‚टैक्स एवं घरेलू रोजगार को ध्यान में रखा गया। आधुनिक कृषि की जरूरतों को पूरा करने और घरेलू रोजगार को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। कृषि उपज मूल्य श्रंखला के लिए प्रासंगिक कृषि और ग्रामीण उद्यम के लिए स्टार्टअप को वित्त–पोषित करने के लिए नाबार्ड के माध्यम से निधि की सुविधा का प्रावधान है। स्टार्टअप एफपीओ का समर्थन करेंगे और किसानों को तकनीक प्रदान करेंगे। उद्यम‚ई–श्रम‚ एनसीएस और असीम पोर्टल जैसे एमएसएमई को आपस में जोड़ा जाएगा‚उनका दायरा बढ़ाया जाएगा। भारत की सबसे बड़ी समस्या लॉजिस्टिक के खर्चे की है‚ जिसे सरकार ने अन्य देशों की तुलना में बराबर करने की कोशिश की है‚और लोगों और सामानों की तेज आवाजाही को सुगम बनाने के लिए एक साल में 25000 किमी. हाइवे का निर्माण हो रहा है। उद्यम और हब के विकास के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम को नये कानून के साथ बदल जाएगा जिससे मौजूद औद्योगिक परिक्षेत्रों को कवर किया जा सकेगा तथा निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाएगा।
रक्षा बजट में 10 फीसद की बढ़ोतरी की गई है। पिछले वर्ष की तुलना में इससे रक्षा उपकरणों के आयात पर निर्भरता को कम करने एवं मेक इन इंडिया को मजबूती प्रदान की जाएगी। राज्य सरकार के कर्मचारियों एवं केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बीच सामाजिक सुरक्षा लाभों को एक समान रखने के लिए दोनों तरफ के कर्मचारियों की कर कटौती की सीमा में 10 फीसद से बढ़ाकर 14 फीसद की गई है। इसके साथ ही कॉरपोरेट सरचार्ज को 12 फीसद से घटाकर 7 फीसद किया गया। वित्त मंत्री ने अपने भाषण के आखिर में कहा कि जनवरी, 2022 के महीने के लिए सकल जीएसटी संग्रह 1,40,986 करोड़ रुपये है‚जो जीएसटी की स्थापना के बाद से सबसे अधिक है। यह उनके बजट का हिस्सा नहीं था पर देशवासियों एवं संसद के संज्ञान में लाना चाहती थीं।
सरकार बजट भविष्य की संभावनाओं और बाजार में मांग बढ़ाने के उद्देश्य से लाई है। इस तरह यह बजट आने वाले 25 वर्षों का आधार स्तंभ है‚जिसमें भारतीय नागरिक और पिछड़े क्षेत्रों के समावेश और विकास पर विशेष बल है। यह देश तभी समृद्ध होगा‚जब सभी नागरिकों को साथ लेकर चले‚जो बजट में दिखता है। बजट भारतीयों के नवोउत्थान का परिचायक है‚आम व्यक्ति को समर्पित बजट भाजपा की अंतिम व्यक्ति तक पहुंच को सुनिश्चित करता है। पार्टी और सरकार की जो प्रतिबद्धता है–’सबका साथ‚ सबका विकास’–को प्रतिबिंबित करती है।
Date:02-02-22
लक्ष्य की ओर अग्रसर बजट
एन के सिंह, ( पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय सचिव )
केंद्र सरकार का यह बजट असाधारण परिस्थितियों के बीच पेश किया गया है। कोरोना महामारी का दौर अभी जारी है। ऐसे में, यह देश के आम बजट का महत्वपूर्ण योगदान रहा है कि जितनी आकांक्षाएं थीं और जितने वर्ग थे, सभी के लिए पूरी विविधता के साथ सकारात्मक व निश्चित कदम उठाए गए हैं। इस दृष्टिकोण से मैं इस बजट को एक अद्भुत प्रयास कहूंगा। इस बजट के तीन-चार मुख्य पहलुओं पर मैं प्रकाश डालना चाहूंगा। सर्वप्रथम व्यय को घटाने का जो रास्ता था, उससे हटकर चलते हुए पूंजीगत व्यय में बहुत सकारात्मक वृद्धि की गई है।
पूंजीगत व्यय को 134 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है, इसके माध्यम से कई काम किए जाएंगे। विकास के कार्यक्रमों को भी ध्यान में रखते हुए पूंजीगत व्यय के माध्यम से रेलवे, बंदरगाह, सड़क परिवहन में जो गति आएगी, वह बहुत सराहनीय है। 25 हजार करोड़ रुपये का लक्ष्य नेशनल हाईवे के लिए रखा गया है। रेलवे में भी वंदे भारत ट्रेन, कार्गो टर्मिनल की घोषणा हुई है। कृषि क्षेत्र में टेक्नोलॉजी पर ध्यान दिया गया है। इसके लिए जरूरी प्रोत्साहन दिया गया है। अपने देश में भूमि रिकॉर्ड बहुत ही नाजुक मामला रहा है और भूमि कानून को कभी भी सहज नहीं बनाया जा सकेगा, यदि भूमि रिकॉर्ड पर हम ध्यान नहीं देंगे। तो डिजिटल टेक्नोलॉजी और डिजिटल ड्रोन मोड से भूमि रिकॉर्ड के बारे में वित्त मंत्री ने घोषणा की है। फसल विविधीकरण के बारे में बात कही गई है। तिलहन के बारे में बात हुई है। आज कृषि विविधिता की जरूरत है, तभी दुरुपयोग रुकेगा, और उदाहरण के लिए, तभी पराली जलाने जैसी समस्याओं से निपटने में भी ठोस मदद मिलेगी। कृषि क्षेत्र में खाद्य और सब्जियों पर बहुत ध्यान दिया गया है।
दूसरा, एक निश्चित कदम के तहत छोटे व मझोले उद्यमों के लिए अलग से धन दिया गया है। कोरोना महामारी से हॉस्पिटैलिटी या सत्कार उद्योग बहुत प्रभावित हुआ है, उसके लिए वर्तमान बजट में पांच लाख करोड़ रुपये अलग से दिया गया है। हालांकि, इस पर ज्यादा बात नहीं हो रही है। कोविड महामारी के समय शिक्षा के क्षेत्र में एक सबसे बड़ी समस्या डिजिटल डिवाइड की थी। गांवों के जो बच्चे हैं, उनके पास साधन नहीं हैं। ऐसे बच्चे शहरी क्षेत्रों में भी हैं, उनके लिए कई निश्चित कदम उठाए गए हैं। बच्चों के लिए 200 टीवी चैनलों की घोषणा की गई है, जिनसे उच्च गुणवत्ता के कंटेंट प्रसारित होंगे। डिजिटल यूनिवर्सिटी की घोषणा और चिकित्सा क्षेत्र में टेक्नोलॉजी पर ध्यान दिया गया है। शहरी विकास पर वर्षों बाद गंभीरता से ध्यान दिया गया है। एक निश्चित प्रयास है कि शहरी विकास के लिए यथोचित योजना बने। इसी संदर्भ में उच्च स्तरीय कमेटी बनाने की घोषणा की गई है। शहरी विकास पर हमारा फोकस वापस जाएगा।
एक महत्वपूर्ण कदम डिजिटल तकनीक के माध्यम से और उसके अतिरिक्त भी प्रधानमंत्री ने पंचामृत की घोषणा जो कोप-26 में की थी, उस दिशा में प्रभावी घोषणा हुई है कि हरित ऊर्जा को कैसे बढ़ाया जाए, ताकि शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके और ऊर्जा बदलाव हम लोग हासिल कर सकें। सबसे सराहनीय बात है कि यद्यपि पूंजीगत व्यय में 135 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, फिर भी मेक्रो स्टेबिलिटी को ध्यान में रखते हुए, यद्यपि इस वित्तीय वर्ष में 34.83 लाख करोड़ रुपये का जो व्यय होगा, उसमें वृद्धि आएगी। इस बार 37.7 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य है।
बजट में वित्तीय घाटे का जो मामला है, उसमें भी महत्वपूर्ण घोषणा हुई है। लोग विश्वास करते थे कि अगर इतना ज्यादा पूंजीगत व्यय किया जाए, तो वित्तीय घाटे पर से नियंत्रण खत्म हो जाएगा, लेकिन सरकार ने वित्तीय घाटे पर नियंत्रण रखा है। यद्यपि लक्ष्य था 6.8 प्रतिशत का और 6.9 प्रतिशत का वित्तीय घाटा कोई बहुत प्रतिकूल बात नहीं है। अगले साल इस वित्तीय घाटे को घटाकर 6.4 प्रतिशत करना है। और जो साल 2025-26 तक के लिए लक्ष्य है 4.5 प्रतिशत, वह ज्यों का त्यों रखा गया है। इस स्थायित्व से पूंजी निवेशकों को बहुत बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा। कर के मामले में भी कई निश्चित कदमों की घोषणा हुई है। सबसे पहले टैक्स की स्थिरता, दूरगामी विश्वास और निरंतरता जरूरी है, इससे लोगों का विश्वास बढ़ता जाएगा। सरकार ने इस पक्ष को ध्यान में रखा है। विशेष रूप से स्टार्टअप के लिए भी कदम उठाए गए हैं।
डिजिटल मुद्रा या पूंजी की चर्चा हुई है। किस रूप में डिजिटल पूंजी है, इसका उल्लेख अभी नहीं किया है। रिजर्व बैंक स्वयं की डिजिटल करेंसी लाने वाला है। क्रिप्टो करेंसी पर 30 प्रतिशत तक टैक्स लगेगा और इसमें किसी प्रकार की रियायत नहीं दी जाएगी। यह आज जो स्वाभाविक स्थिति है, उसकी एक स्वीकारोक्ति है। यह अच्छा है या बुरा, इसका विश्लेषण अलग से हो सकता है, लेकिन अर्थव्यवस्था के इस पहलू को बजट में स्वीकार करके अच्छा कदम उठाया गया है। डिजिटल मुद्रा पर अभी तक कोई नियंत्रण नहीं था, इसका प्रचार-विज्ञापन हर जगह किया जा रहा था, अब इस क्षेत्र में निवेश करने वालों को टैक्स चुकाना होगा। सरकार द्वारा इस दिशा में स्थिति स्पष्ट करना जरूरी था।
इस बजट से आत्मनिर्भर भारत को प्रोत्साहन मिलना है। निरंतरता, विश्वास, विकास और जो लक्ष्य है 75 वर्ष से आगे भारत के 100 साल का, जिसे अमृत अवसर कहते हैं, उस दिशा में यह बजट बहुत सकारात्मक कदम है।
वैसे बजट को लेकर यह भी चर्चा होगी ही कि यह नहीं हुआ या वह नहीं हुआ। यह तो हर बजट के समय हम देखते ही हैं। किसी एक बजट से सबको संतुष्ट करना कठिन है। लेकिन मैं इस बजट से किसी न किसी तरह से जुड़ा हूं। साल 1991 में पेश हुए देश के बहुत महत्वपूर्ण बजट के समय से किसी न किसी तरह से इससे जुड़ा रहा हूं, पिछले बजटों से अगर तुलनात्मक रूप से देखूं, तो यह बजट निश्चित ही सराहनीय है और अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है।