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Budget Session 2019: संसद में उठेंगे कई मुद्दे, गृहमंत्री भी पेश करेंगे अपना पहला बिल
Publish Date:Mon, 24 Jun 2019 11:18 AM (IST)
Budget Session 2019: संसद में उठेंगे कई मुद्दे, गृहमंत्री भी पेश करेंगे अपना पहला बिल

17वीं लोक सभा के पहले सत्र के दौरान लोकसभा में आज कई अहम विधेयक पेश किए जाने के लिए सूचीबद्ध किए गए हैं। इसमें जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक भी शामिल है।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। संसद के चालू बजट सत्र के दौरान सोमवार को आधार कानून में संशोधन संबंधी विधेयक के साथ जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक लोक सभा में पेश किए जाने के लिए सूचीबद्ध है। लोकसभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) जम्‍मू कश्‍मीर आरक्षण संबंधित अपना पहला बिल और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद आधार व अन्‍य कानून संशोधन बिल पेश करेंगे। दूसरी ओर तमिलनाडु में जल संकट को लेकर द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) सांसद टीआर बालू ने भी लोकसभा में नोटिस दिया है। वहीं इवीएम के विरोध में संसद परिसर में टीएमसी धरना प्रदर्शन कर रही है। टीएमसी की बैलट पेपर से चुनाव कराने की मांग है।

लाइव अपडेट्स

– ‘नो इवीएम, वी वांट पेपर बैलट’ लिखे पोस्‍टरों को हाथ में लिए संसद के बाहर महात्‍मा गांधी की मूर्ति के पास टीएमसी सांसदों द्वारा प्रदर्शन किया जा रहा है।

– राष्‍ट्रीय जनता दल राज्‍य सभा सांसद मनोज झा ने कहा, ‘मुजफ्फरपुर में बच्‍चों की मौत पर मैंने राज्‍य सभा में ध्‍यानाकर्षन प्रस्‍ताव दिया है। जिसमें इस मुद्दे पर 24 जून को राज्यसभा में बहस करने की गुजारिश की गई है।’

–  राष्‍ट्रीय राजधानी में बढ़ते अपराध के मुद्दे को उठाते हुए आम आदमी पार्टी के राज्‍यसभा सांसद संजय सिंह ने राज्‍य सभा में जीरो आवर नोटिस दिया है।

केंद्रीय गृहमंत्री द्वारा पेश किए जाने वाले जम्‍मू कश्‍मीर आरक्षण संबंधित बिल के तहत जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 में संशोधन किया जाएगा। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास रहने वाले लोगों को भी वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास रहने वाले लोगों की तरह ही आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।

क्‍या कहता है संशोधन-

आरक्षण नियम में हुआ संशोधन कहता है कि कोई व्यक्ति जो पिछड़े क्षेत्रों, नियंत्रण रेखा और अंतराष्ट्रीय सीमा से सुरक्षा कारणों से चला गया हो उसे आरक्षण के फायदों से वंचित नहीं किया जा सकता। पिछड़े इलाकों, एलओसी और आईबी के करीब रहने वाले इलाकों के निवासियों को कई सारी सुविधाएं मिलती हैं, जिसमें सरकारी नौकरियों में आरक्षण और पदोन्नित और सब्सिडी का फायदा मिलता है।

पिछड़े क्षेत्रों के निवासियों, नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) के पास रहने वाले किसी भी व्यक्ति को शासकीय फायदा तभी मिल सकता है, जब वह पिछड़े क्षेत्र के रूप में चिह्नित जगहों पर 15 वर्षों से रह रहा हो।

कश्‍मीरी पंडितों को राहत

बता दें कि जम्मू कश्मीर सरकार ने पिछले महीने हजारों कश्मीरी पंडितों को बड़ी राहत देते हुए राज्य के लोगों के कई वर्गों को आरक्षण प्रमाणपत्र जारी किए जाने के नियमों में संशोधन की घोषणा की थी। इससे हजारों विस्थापित कश्मीर पंडितों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा था क्योंकि आतंकियों की धमकी की वजह से उन्होंने अपने घरों को छोड़ दिया था। सरकार की ओर से चिह्नित पिछड़े क्षेत्रों में रह रहे हजारों प्रवासी पंडितों को उस क्षेत्र में 15 वर्षों तक रहने की बाध्यता की वजह से आरक्षण का फायदा नहीं मिल रहा था।

राष्‍ट्रपति के अभिभाषण पर धन्‍यवाद प्रस्‍ताव पर चर्चा

संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में सबसे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होगी। इसके बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन 2019 बिल पेश करेंगे। लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के लिए 10 घंटे का समय तय किया गया है, जबकि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति की ओर से लगाए गए अनुच्छेद 356 को जारी रखने के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए तीन घंटे का समय रखा गया है।

Clouds of war: on U.S.’s ‘maximum pressure’ tactics with Iran

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The United States needs to dial down on its ‘maximum pressure’ tactics with Iran

U.S. President Donald Trump’s decision to pull back from air strikes on Iran, after the latter shot down an American drone near the Strait of Hormuz, was a rare moment of restraint amid otherwise escalating tensions between the two countries. The rationale behind the pull-back, according to Mr. Trump, was that he did not want to cause any loss of Iranian lives as no American lives were hurt by the Iranians. Clearly, Mr. Trump, who had campaigned against the costly wars of the U.S. overseas, does not seem to be in favour of launching an open conflict with Iran. A war with Iran could be prolonged and disastrous. Iran has ballistic missiles, proxy militias and a relatively vibrant navy. And the Strait of Hormuz, through which one-third of the world’s seaborne oil shipments move, is within its range. Mr. Trump does not want to take a risk unless there are provocations from Iran targeting American lives. While this approach is better than that of Mr. Trump’s National Security Adviser, John Bolton, who has threatened Iran with war several times, what the U.S. President overlooks is that the current state of tensions is a product of his “maximum pressure” tactic. A year ago Mr. Trump pulled the U.S. out of a nuclear deal with which Iran was fully compliant, setting off the escalation. His plan was to squeeze the Iranian economy and force Tehran back to the table to renegotiate the nuclear issue as well as Iran’s missile programme and regional activism, for a “better deal”. A year later, the U.S. and Iran are on the brink of a war.

The problem with Mr. Trump’s “maximum pressure” approach is that he doesn’t seem to have a plan between the sanctions-driven pressure tactics and a potential military conflict. Iran, on the other hand, is ready to take limited risks, as its actions such as the threat to breach the uranium enrichment limits set by the nuclear deal and the downing of the American drone suggest, to break the stranglehold of the sanctions. As a result, Mr. Trump has a situation where maximum pressure is not producing the desired result, and both countries are edging towards a war he doesn’t want. This is a strategic dilemma that warrants a recalibration of policy. Mr. Trump’s decision to call off the strike and the new red line he set for Iran could create an opportunity for such a recalibration. He could seize the moment to assure Iran that his primary goal is engagement, not conflict. What Iran wants the most is relief from the sanctions. Instead of sticking to a policy that has proved to be counter-productive and risky, Mr. Trump could offer Tehran some reprieve in return for its remaining in the nuclear deal, which could be followed up by a fresh diplomatic opening. If he continues with the pressure tactics, tensions will stay high, the Strait of Hormuz would be on the brink, and further provocations by either side, or even an accident, could trigger a full-scale conflict. That is a dangerous slope.

प्रश्न- क्या कारण है कि हमारे देश में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्यधिक सक्रियता है। इस सक्रियता ने बायोफार्मा के क्षेत्र को कैसे लाभ पहुँचाया है?

Analysis: कश्मीर में कुछ नया करने की जरूरत, तिरंगे में लिपटे सैनिकों के ताबूत सरकार की न बनने पाएं पहचान

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राजनीतिक दूरदर्शिता यही सुनिश्चित करनेमें निहित है कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान तिरंगे में लिपटे सैनिकों के ताबूत सरकार की पहचान न बनने पाएं।

सी उदयभास्कर। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भले ही बीती 15 जून को यह कहा हो कि राज्य में आतंकी गतिविधियां कम हुई हैं और हालात में ‘काफी’ सुधार हुआ है, लेकिन हकीकत इससे उलट दिखती है। कुछ हालिया घटनाएं संकेत करती हैं कि हिंसा फिर से सिर उठा रही है।

कई जवान हुए शहीद
17 जून को हिंसक वारदात में सेना के एक मेजर शहीद हो गए। इसके कुछ दिन पहले अनंतनाग में सीआरपीएफ के पांच जवान शहीद हुए और कई घायल हो गए थे। राष्ट्रीय राइफल्स के मेजर केतन शर्मा और सीआरपीएफ के जवानों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करके सुरक्षाकर्मियों की उस सूची में जगह बना ली जिनका जीवन उस छद्म युद्ध की भेंट चढ़ गया जिसका भारत जनवरी 1990 से ही सामना कर रहा है। जम्मू- कश्मीर इस जंग का अखाड़ा बना हुआ है।

आतंक को खत्म करने का हमारा संकल्प दृढ़
इन आतंकी हमलों की भत्र्सना करते हुए राज्यपाल मलिक ने 20 जून को कहा, ‘जब भी सुरक्षा बलों द्वारा शांतिपूर्ण चुनाव कराने या आतंकियों का लगातार सफाया करने जैसे सफल अभियान चलाए जाते हैं तब सीमा पार बैठे आतंकियों के आका उन्हें फिदायीन हमले करने का हुक्म देते है और अनंतनाग जिले में हुआ हमला फिदायीन हमला ही था।’ उन्होंने यह भी कहा कि आतंकी और उनके आकाओं को यह पता होना चाहिए कि आतंक के इस उन्माद को खत्म करने का हमारा संकल्प दृढ़ है।

फिर से बड़े आतंकी हमले की आशंका
कश्मीर में आतंकी हमलों के बीच एक अजीबोगरीब घटना भी सामने आई। 16 जून को दावा किया गया कि पाकिस्तान ने भारत और अमेरिका के साथ एक सूचना साझा की जिसमें पुलवामा में आइईडी से लैस वाहन से धमाके की आशंका व्यक्त की गई थी। हालांकि भारतीय खुफिया एजेंसियों ने स्पष्ट किया कि यह जानकारी पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग में अज्ञात व्यक्ति द्वारा कॉल के जरिये दी गई थी। यह किसी विश्वसनीय स्रोत द्वारा दी गई आधिकारिक जानकारी नहीं थी।

लगातार बढ़ रहा शहीदों का आंकड़ा
जम्मू-कश्मीर में यह छद्म युद्ध तमाम अनमोल जिंदगियों को लील रहा है। इस साल के आंकड़े तो और चिंताजनक हैं। जनवरी से अब तक 62 सुरक्षाकर्मी आतंकी हिंसा के चलते अपना जीवन गंवा चुके हैं। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में इसमें नौ का इजाफा और हो चुका है जिससे यह आंकड़ा 71 तक पहुंच गया है। तमाम आम नागरिक भी इसकी तपिश झेल रहे हैं। इससे निपटने के लिए राज्यपाल मलिक ने जो हल सुझाया वह काफी महंगा साबित हो रहा है।

राज्य में चुनाव के कोई संकेत नहीं
याद दिला दें कि राज्य में 20 जून, 2018 को राज्यपाल शासन लगा जब पीडीपी-भाजपा का असहज गठबंधन टूट गया। छह महीनों के राज्यपाल शासन की अवधि के बाद यह राष्ट्रपति शासन में तब्दील हो गया। एक साल बीत गया, लेकिन राज्य में चुनाव के कोई संकेत नहीं दिख रहे। स्थानीय राजनीतिक प्रक्रिया जस की तस शिथिल पड़ी हुई है। ऐसे में मौजूदा व्यवस्था कायम रहने के ही आसार हैं।

कई परतों में उलझा है कश्मीर मुद्दा
अक्टूबर, 1947 से ही कश्मीर मुद्दा पहेली की तरह उलझा हुआ है। भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय रिश्तों में यह लगातार अहम बना हुआ है। 1950 के दशक में नेहरू-अयूब खान से लेकर मोदी इमरान खान के दौर में इस मोर्चे पर कुछ नहीं बदला। कश्मीर मुद्दा कई परतों में उलझा हुआ है। इसे भौगोलिक स्थिति, भू-राजनीतिक विशेषता और जनसांख्यिकी मिश्रण जैसे पहलुओं पर देखा जाता है।

अनुच्छेद 370
याद रहे कि यह इकलौता मुस्लिम बहुल राज्य था जो भारतीय संघ में शामिल हुआ जिसमें भारत और पाकिस्तानी दोनों पहचानें समाहित हैं। विलय की संधि के तहत जहां इसे विशेष दर्जा हासिल है वहीं भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 के अंतर्गत इसे विशिष्ट स्वायत्तता भी मिली हुई है।

पाक की नई रणनीति छद्म युद्ध
जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकी अगर राज्य की राजनीति को दिशा देती है तो दिल्ली-श्रीनगर के समीकरण राजनीतिक दिशा के मुख्य निर्धारक बनते हैं। पाकिस्तान बाहुबल से राज्य को हड़पने की कोशिशें करता रहा है। दो सीधे युद्धों में नाकाम होने के बाद उसने रणनीति बदलते हुए 1990 से राज्य में घुसपैठ और आतंकवाद का रास्ता पकड़कर छद्म युद्ध शुरू कर दिया। 1999 का कारगिल भी इसमें शामिल है।

मोदी ने बनाई मजबूत भारत की छवि
फरवरी 2019 में हुआ पुलवामा हमला तनातनी की हालिया मिसाल है। इसके बाद भारत ने बालाकोट में हवाई हमला किया। यह एक नया पड़ाव है। मोदी की दूसरी बार जबरदस्त जीत ने ऐसे मजबूत भारत की छवि बनाई है जिसकी कमान एक बहुत सशक्त एवं दृढ़ नेता के हाथ में है।

मोदी ने आतंक के मुद्दे को रखा सबसे आगे
चुनाव प्रचार के दौरान अपने बयानों से मोदी ने यही धारणा बनाई कि किसी भी तरह के आतंकी हमले में भारत चुप होकर बैठने वाला नहीं। ऐसे में इस्लामाबाद में भारतीय मिशन को किया गया अज्ञात कॉल शायद पाकिस्तान की नई एहतियाती नीति का हिस्सा हो। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तानी पहलू से निपटना जटिल होगा और इसमें काफी समय भी लगेगा, क्योंकि चीन, अमेरिका, रूस, ईरान, अफगानिस्तान और जिहादी धड़ों जैसी बाहरी ताकतें भी इसमें जुड़ी हैं।

अमरनाथ यात्रा एक बड़ी चुनौती
जम्मू-कश्मीर के घरेलू हालात में दिल्ली अहम कारक है और मोदी के पास भी 2014 की तुलना में ज्यादा राजनीतिक ताकत है। मोदी सरकार के लिए तात्कालिक चुनौती यही होगी कि वह एक जुलाई से शुरू होने जा रही अमरनाथ यात्रा को अभेद्य सुरक्षा उपलब्ध कराकर शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराए। अतीत में भी आतंकी इस वार्षिक धार्मिक आयोजन को निशाना बनाते रहे हैं। जुलाई 2017 में आतंकियों ने आठ श्रद्धालुओं की हत्या कर दी थी और उससे पहले 2000, 2001 और 2002 में और बड़े आतंकी हमले हुए थे।

धार्मिक सौहार्द का प्रतीक अमरनाथ यात्रा
अमरनाथ यात्रा कश्मीर के बहुलतावाद एवं धार्मिक सौहार्द का प्रतीक रही है। स्थानीय मुस्लिम हिंदुओं के इस बड़े आयोजन को सुरक्षित रूप से संपन्न कराते रहे हैं। यह अफसोसजनक है कि कश्मीर की युवा आबादी केवल बीते ढाई दशकों के बुरे अनुभवों और भेदभाव से ही वाकिफ है। पिछले साल तो स्थानीय सामाजिक-राजनीतिक परिवेश और भी शुष्क हो गया था।

कश्मीरी भावनाओं पर मरहम
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दम पर भाजपा को जबरदस्त जनादेश दिलाया है। उनकी राजनीतिक विरासत के लिहाज से यह एक अहम मोड़ है। क्या वह वाजपेयी की राह पर चल सकते हैं जिसमें पहले तो स्थानीय कश्मीरी भावनाओं पर मरहम लगाया जाए और फिर उनमें आशंका और अलगाव के भाव को खत्म किया जाए।

जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव
वह विधानसभा चुनावों का एलान करके शिथिल पड़ी घरेलू राजनीतिक प्रक्रिया को प्रोत्साहन देंगे या फिर सुरक्षा बलों के दम पर सख्त रवैया अपनाएंगे और केवल आतंकवाद के दमन पर ही पूरा ध्यान केंद्रित करेंगे? बाद वाले उपाय पर ध्यान देने से उन नरम और स्मार्ट कदमों की अनदेखी हो जाएगी जिनकी कश्मीर को सख्त जरूरत है।

भारतीय सैनिकों को चुकानी पड़ रही बड़ी कीमत
साल की पहली छमाही में 71 सैनिकों की शहादत इस कड़वी हकीकत का प्रमाण है कि भारतीय सैनिकों को कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। राजनीतिक दूरदर्शिता यही सुनिश्चित करने में निहित है कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान तिरंगे में लिपटे सैनिकों के ताबूत सरकार की पहचान न बनने पाएं।

(लेखक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ एवं सोसायटी फॉर पॉलिसी स्टडीज के निदेशक है।)

मोदी ने रांची से पूरी दुनिया को योग सूत्र में बांधा

मोदी ने रांची से पूरी दुनिया को योग सूत्र में बांधा

राज्य ब्यूरो, रांचीपांचवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर भारत के साथ पूरी दुनिया योग के रंग में रंग गई। इस वैश्विक आयोजन का केंद्र था झारखंड की राजधानी रांची का प्रभात तारा मैदान, जहां पीएम ने योग के आसन भी किए, लोगों को भारतीय संस्कृति के इस प्रतीक से भी जोड़ा और यह एलान भी किया कि योग जाति, धर्म, अमीर-गरीब, कमजोर-सशक्त-हर दायरे से ऊपर है। ठीक सुबह साढ़े छह बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां योगाभ्यास करने जुटे लोगों से कहा-सुप्रभात और इसके साथ ही देश-दुनिया में योग के इस महाआयोजन की शुरुआत हो गई। एक अरब से ज्यादा भारतीयों के साथ दुनिया के अलग-अलग देशों में योग को सलाम करने-अपनाने का सिलसिला शुरू हो गया। सबसे ऊंचे और ठंडे युद्धक्षेत्र सियाचिन से लेकर अरुणाचल प्रदेश में चीन की सीमा तक सेना के विभिन्न अंगों के साथ तमाम अर्धसैनिक बलों के जवान योगाभ्यास में जुटे। पहाड़ की ऊंचाइयों पर सैनिकों ने योग किया तो समुद्र के जल में तैरते पोत में भी। सैनिकों के साथ ही पूरे देश में अलग-अलग शहरों में भी लोग योग दिवस मनाने के लिए उमड़े। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने भी पहली बार योग का महत्व स्वीकारा। पाक सरकार के ट्वीट में लिखा गया कि यह फिटनेस के लिहाज से महत्वपूर्ण है। योग शारीरिक व मानसिक क्षमता का तेजी से विकास करता है, जो शरीर व मस्तिष्क को लंबे समय तक स्वस्थ रखता है। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन ने योग को भारत-श्रीलंका की साझी विरासत के तौर पर पेश किया। उन्होंने वृक्षासन और भुजंगासन करते हुए वीडियो भी शेयर किए हैं। चीन की सेना के जवानों ने लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारतीय जवानों के साथ योगासन किया। इधर, रांची में प्रधानमंत्री ने आम लोगों के बीच बारिश की धीमी फुहार में 45 मिनट तक योग के 13 आसन किए। उनकी सहजता, अपनापन, लोगों को जोड़ने की कला लोगों को भीतर तक सराबोर कर गई। झारखंड में अभिवादन के लिए उन्होंने जहां राऊरे मन के जोहार (आप लोगों को नमस्कार) से शुरुआत की तो अंग्रेजी में सात समुंदर पार बैठे योग प्रेमियों तक भी अपना यह संदेश पहुंचाया कि योग को जन-जन तक पहुंचाएं। महज पांच वर्ष पूर्व 2014 में संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में योग को अंतरराष्ट्रीय फलक पर लाने वाले मोदी का संदेश इस मायने में भी अहम है कि वे इसे शहर से गांव की ओर ले जाने का आह्वान करते दिखे। मोदी ने कहा, हमें ठीक उसी तरह योग के बारे में ज्ञान बढ़ाते रहना चाहिए जिस तरह हम अपने फोन को अपडेट करते रहते हैं। योग अनुशासन-प्रतिबद्धता का दूसरा नाम है और पूरा जीवन इसके अनुरूप बिताना चाहिए। योग हर किसी का है और हर कोई योग के लिए है। प्रभात तारा मैदान से जाते-जाते मोदी योग को वैश्विक समर्थन पर आभार भी जता गए। उन्होंने अपनी चिंता भी साझा की और उसका निदान भी सुझाया। कहा-शांति, सद्भाव और समृद्धि के लिए योग ही पांचवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का संदेश है।

रांची के प्रभात तारा मैदान में योग करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। उन्होंने योग को जन-जन तक पहुंचाने पर जोर दिया। (विशेष आयोजन-पेज-7 ) एएनआइ

4झारखंड की राजधानी के प्रभात तारा मैदान में पीएम ने 45 मिनट तक किए योग के आसन

4पाकिस्तान ने पहली बार योग के महत्व को किया स्वीकार, इस बारे में किया ट्वीट

योग अनुशासन है, समर्पण है। यह आयु, रंग, जाति, संप्रदाय, मत, पंथ, अमीरी, गरीबी, प्रांत, सरहद के भेद, सीमा के भेद, इन सबसे परे है। योग सबका है और सब योग के हैं।

-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

हंगामे के बीच तत्काल तीन तलाक विधेयक लोकसभा में पेश, विपक्ष ने किया तीखा विरोध

हंगामे के बीच तत्काल तीन तलाक विधेयक लोकसभा में पेश, विपक्ष ने किया तीखा विरोध

हंगामे के बीच तत्काल तीन तलाक विधेयक लोकसभा में पेश, विपक्ष ने किया तीखा विरोध

विपक्ष के विरोध के बीच तीन तलाक बिल ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल 2019’ शुक्रवार को लोकसभा में पेश किया गया।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। 17वीं लोकसभा का पहला ही दिन हंगामे से शुरू हुआ। सरकार की ओर से पहले विधेयक के रूप में तत्काल तीन तलाक विधेयक पेश किया गया, जिसका विपक्ष ने तीखा विरोध किया। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक के बीच सदन में बहुमत (186 पक्ष में और 74 विरोध में) से विधेयक को पेश करने की अनुमति मिल गई। विधेयक पेश करते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘यह इंसाफ का मामला है, महिलाओं की इज्जत का मामला है और सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है।’

तत्काल तीन तलाक विधेयक पिछली लोकसभा में पारित हो चुका था, लेकिन राज्यसभा में कभी पारित नहीं हो सका। सरकार को इसके लिए दो बार अध्यादेश का सहारा लेना पड़ा था।विधेयक पेश होते ही विपक्ष ने इसका तीखा विरोध शुरू कर दिया। विपक्ष की आपत्तियां खारिज करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह किसी धर्म या मजहब का सवाल नहीं है। बल्कि सवाल नारी के न्याय और नारी की गरिमा का है। महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 15(3) महिलाओं के लिए अलग से कानून बनाने का अधिकार देता है।

उन्होंने कहा, ‘हम सांसद हैं, हमारा काम कानून बनाना है और जनता ने हमें कानून बनाने के लिए ही चुना है।’ लेकिन विपक्ष अंतिम समय तक इसके विरोध में खड़ा रहा। विधेयक के खिलाफ हमले की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इसे सिविल और क्रिमिनल लॉ का विरोधाभासी बताया। साथ ही उन्होंने इसे एक खास वर्ग के खिलाफ बताया जिसमें मुस्लिम पुरुषों को तत्काल तीन तलाक देने पर सजा का प्रावधान किया गया है।

पिछली लोकसभा में भी कांग्रेस इन्हीं तर्को के साथ तत्काल तीन तलाक विधेयक का विरोध करती रही थी। इसी तरह, ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का कहना था कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। उनके अनुसार, विधेयक में मुस्लिम पुरुषों के लिए तीन साल की सजा प्रावधान है, जबकि दूसरे धर्म के लोगों के लिए एक साल की सजा का प्रावधान है।

ध्वनिमत से विधेयक पेश करने की मंजूरी मिलने के बाद भी असदुद्दीन ओवैसी मतविभाजन पर अड़ गए। सांसदों की सीटें निर्धारित नहीं होने के कारण पर्ची के सहारे मतदान कराया गया। आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने भी विधेयक को संविधान के खिलाफ बताया। मालूम हो कि लोकसभा में इस विधेयक के पारित होने में कोई अवरोध नहीं है। लेकिन राज्यसभा में फिर से विपक्ष का रुख परेशान कर सकता है।

कांग्रेस नकारात्मक सोच का प्रतीक
‘कांग्रेस नकारात्मक सोच का प्रतीक है। आज तीन तलाक पर मध्यकालीन परिपाटी के खुले समर्थन में उनकी नकारात्मकता दिखी। अब उन्होंने योग दिवस का मजाक उड़ाकर हमारी सेनाओं का फिर से अपमान किया। उम्मीद है कि सकारात्मक सोच की जीत होगी जो मुश्किल चुनौतियों से पार पाने में मदद कर सकती है।’

– अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री

U.S. keen to accelerate ties in wake of huge Modi mandate

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Underscores U.S. commitment to partnership with India

The U.S. wants to use Secretary of State Michael Pompeo’s visit to New Delhi next week to capitalise on the early days of Modi 2.0 and accelerate its ties with India. However, trade concerns and India’s planned purchase of the S-400 missile shield from Russia remain problematic.

“We’re at a high point in the U.S.-India Strategic Partnership, and we think we have an unprecedented opportunity to broaden and deepen that relationship,” a Senior State Department official, who did not want to be named, told reporters on a briefing call Friday.

“And so we want to seize this moment early in his second administration to accelerate what has been the upward trajectory of our relationship and to set some ambitious goals,” the official said, referring to Prime Minister Modi having secured a strong mandate after the recent elections.

The State Department confirmed that Mr. Pompeo will hold talks with Prime Minister Modi and External Affairs Minister S. Jaishankar, who was described by the official as “one of the visionaries behind the expansion of the U.S.-India Strategic Partnership.”

Mr. Pompeo will also deliverer a speech on the future of the relationship in New Delhi and discuss the economics aspects of the relationship with business leaders.

“Secretary Pompeo will talk specifically with his counterpart about expanding security, energy, and space cooperation, among other things,” the official said, referring to Mr. Pompeo’s planned talks with Mr. Jaishankar.

However, considerable trade challenges between the two countries remain.

“Our companies have concerns over market access and the lack of a level playing field in important sectors, and recent Indian government measures, such as increasing tariffs on a range of products, restricting e-commerce operations, and limiting the free flow of data are particularly problematic – not just for U.S. companies, I would say, but for Indian companies and their long-term competitiveness,” the official said. “We want both of our nations to thrive.”

With regard to Iran, Mr. Pompeo is expected to discuss oil and India’s development of Iran’s Chabahar port.

“We appreciate the steps India has taken to reduce its crude oil imports from Iran,” the official said [India’s Ambassador to the United States had said that India had stopped new purchases of Iranian oil altogether once exemptions from U.S. sanctions expired in early May].

“I think India shares our concerns about the possibility of a nuclear Iran. It’s not something that contributes to regional stability. And at the same time, we’ve engaged with the Indians in a conversation as to how to preserve an exemption for the Chabahar Port…,” the official added.

With regard to India’s plans of purchasing the S-400 Triumf missile defence system from Russia, the State Department official continued to stress a common theme emanating from Washington over the last few months: do not necessarily expect a waiver.

Any waiver would have to come from the U.S. President, who has been authorised to provide one under certain conditions, such as when the country in question (India, in this case) is cooperating with the United States

“With respect to S-400, I mean, we’re urging all of our allies and partners, India included, to forego transactions with Russia that risk triggering the CAATSA sanctions.” The official said the U.S. had offered India a level of access to its military technology, not normally available to non-treaty partners, citing the example of its offer to sell India armed UAV Sea Guardians.