News Clipping 19-07-2018

Date:19-08-18

भगोड़े आर्थिक अपराधियों पर शिकंजा

नारायण कृष्णमूर्ति

ललित मोदी, विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के नाम बैंकों से लिए कर्ज चुकाए बिना उनके भारत से भागने के कारण लोगों की जुबान पर हैं। यह उन कानूनी लड़ाइयों से बचने या प्रवर्तन अधिकारियों के दबाव से बचने का एक तरीका भी था, जिनका वे सामना कर रहे थे या करने वाले थे। दुर्भाग्य से इनमें से सभी लचर कानून और अपनी चतुराई की वजह से विदेश भागने में कामयाब रहे। लचर कानून ने उन्हें देश छोड़ने में मदद की।

वैसे आर्थिक अपराधी, जो देश छोड़कर भागने का काम करते हैं, आम तौर पर अपनी अचल संपत्ति यहीं छोड़कर जाते हैं, जिन पर प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कब्जा करना कानूनी खामियों की वजह से आसान नहीं होता, क्योंकि कानून उन्हें ऐसी संपत्ति बेचकर देय राशि वसूलने की अनुमति नहीं देता। पर आर्थिक अपराधी विधेयक, 2018 पारित होने के बाद इसमें बदलाव होने जा रहा है, जो अब राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बन गया है। सीधे शब्दों में कहें, तो इस कानून के जरिये सरकार को कथित अपराधियों की संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार मिल गया है।

यह कानून आरोपी को भारत लौटने और अपने अपराध के लिए मुकदमे का सामना करने को बाध्य करता है। यह बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को ऐसे भगोड़े आर्थिक अपराधियों द्वारा किए गए वित्तीय चूक से उच्च वसूली प्राप्त करने में भी मदद करेगा, जिससे ऐसे संस्थानों की वित्तीय सेहत सुधरेगी। असल में यह कानून एक ऐसे व्यक्ति को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित करने के लिए एक कोर्ट (मनी लॉन्डरिंग ऐक्ट, 2002 के तहत विशेष अदालत) का प्रावधान करता है, जिसके खिलाफ निर्धारित अपराध के संबंध में गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है और जिसने आपराधिक अभियोजन से बचने के लिए भारत छोड़ दिया है या विदेश में होने के कारण आपराधिक अभियोजन पक्ष का सामना करने के लिए भारत लौटने से इन्कार कर दिया है। इस कदम से भारत या विदेश में अपराध को तेजी से नतीजे पर पहुंचाया जाएगा, और निर्धारित अपराध के संबंध में भगोड़े को भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र में कानून का सामना करने के लिए भारत लौटने पर मजबूर करेगा।

ऐसे मामलों में, जिसमें भगोड़े की वापसी में दे हो रही हो, प्रवर्तन एजेंसियों को संपत्ति जब्त करने का अधिकार होगा, जिसे उसकी देनदारी का भुगतान करने के लिए बेचा जा सकता है। यह कानूनी रूप से संभव होगा, क्योंकि यह प्रवर्तन एजेंसियों को विशेष अदालत के समक्ष इस घोषणा के लिए याचिका दायर करने की इजाजत देता है, कि अमुक व्यक्ति एक भगोड़ा आर्थिक अपराधी है। एक बार ऐसा हो जाने के बाद कानून उन्हें भगोड़े आर्थिक अपराधी की संपत्ति और अपराध की लागत को जोड़ने की अनुमति दे देगा। फिर उनके पास कानूनी रूप से जब्त की गई संपत्ति को बेचने के लिए एक प्रशासक नियुक्त करने का अधिकार होगा।

असल में मुकदमे के निपटारे की प्रतीक्षा करने के बजाय सरकार भगोड़ों की संपत्ति को उन्हें दोषी साबित होने से पहले जब्त करने में सक्षम होगी। हालांकि इस कानून में थोड़ी अस्पष्टता है कि क्या यह कानून उस व्यक्ति पर लागू होगा, जिन्हें भगोड़ा घोषित करने से पहले अपराधी घोषित किया जा चुका है। इसके अलावा, यह एक आरोपी के कानूनी लड़ाई लड़ने के अधिकार का भी उल्लंघन है, इससे पहले यह साबित हो कि उसका धोखाधड़ी या चूक का कोई इरादा था। कुछ व्यावसायिक मामलों में यह स्पष्ट होना बाकी है कि अपराध जान-बूझकर किया गया या यह व्यावसायिक व आर्थिक चुनौतियों का परिणाम था।

ऐसे भी उदाहरण हैं, जहां जब्त संपत्तियों को बेचना मुश्किल होता है। मसलन, सहारा की एम्बी वैली, जिसके लिए बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा नियुक्त अधिकारी के तमाम प्रयासों के बावजूद पिछले एक साल से खरीदार नहीं मिल पाया है। इस तरह का दूसरा उदाहरण मुंबई में किंगफिशर हाउस (निष्क्रिय किंशफिशर एयरलाइन का कार्यालय) है, जिसे नीलामी के छह प्रयासों के बावजूद कोई लेने वाला नहीं है। इसके लिए कुछ हद तक ऐसी संपत्तियों के स्वामित्व से संबंधित अस्पष्ट कानून और संपत्ति का मूल्य भी जिम्मेदार हो सकता है, क्योंकि अदालत द्वारा निर्धारित मूल्य बाजार मूल्य से अधिक हो सकता है।

ऐसी भी मान्यता है कि मुकदमेबाजी में फंसी और विफल कारोबार से संबंधित संपत्ति को खरीदना खरीदार के लिए अशुभ होता है। ऐसी आशंकाओं को रोकने के लिए कानून को एजेंसियों को उसे कई हिस्सों में निष्पादन करने या उसका उपयोग करने की इजाजत देनी चाहिए, ताकि उससे धन प्राप्त किया जा सके। छोड़े गए व्यवसाय के मामले में (जैसे चोकसी का गीतांजलि ज्वैलर्स) बेगुनाह कर्मचारियों के जीवन को खतरे में डालने के बजाय व्यवसाय को अदालत या मध्यस्थों द्वारा तब तक चलाया जा सकता है, जब तक कि मामले का निपटारा न हो जाए। जल्दी से कदम उठाने का सबक सीखना चाहिए, जैसा कि सत्यम धोखाधड़ी के प्रकाश में आने के बाद एक सरकारी समिति ने प्रदर्शित किया था।

द प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग ऐक्ट, 2002 सख्त है और अब इस कानून के साथ प्रवर्तन एजेंसियों के पास अपराधियों को पकड़ने के लिए जरूरी अधिकार होंगे। लेकिन इस कानून की परीक्षा होना अभी बाकी है और इसे पहली सफलता मिलने या इसके साकार होने में समय लगेगा। जैसा कि संसद में बताया गया, करीब 30 आर्थिक अपराधी देश से बाहर हैं, लेकिन उनके वापस लौटने और दंड का सामना करते हुए देखने के लिए लंबा इंतजार करना होगा।

अधिकांश आर्थिक अपराधी भागते समय बहुत कम मूल्य की संपत्ति छोड़कर जाते हैं और अगर कुछ छोड़ते भी हैं, तो उसके स्वामित्व का मुद्दा जटिल होता है, जिससे अपराधी के स्वामित्व को साबित करना कठिन होता है। इन ऊंचे रसूख वाले अपराधियों में से कुछ के पास दोहरी नागरिकता है, जो उन्हें भारतीय अभियोजन से बचने में मदद करती है। फिर भी असहाय होकर उनके वापस लौटने का इंतजार करने के बजाय यह बार-बार अपराध करने वाले को वापस लाने या उनकी संपत्ति बेचने और बकाया राशि वसूलने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है।